गांधीगीरी हारी
भारत की आजादी के 70 वे स्वतंत्र दिन के मौके पर बड़े दुःख और पीड़ा के साथ कहना पड रहा है भारत में गांधी गिरी हारी।
जिस मोहनदास करमचंद गांधी ने अंग्रेज साम्राज्य से सिर्फ अहिंसा और सत्त्याग्रह के जरए भारत को आजादी दिलाई।
जिन के सत्त्याग्रह के मार्ग को दुन्या ने सराहा जिस गांधी ने विश्व को प्रेरणा दी जो गांधी भारत का आदर्श है आज उसी भारत में गांधीगिरी हारी।
महान ब्रटिश सरकार को जिन की हुकूमत में कभी सूरज नहीं डूबता था उन्हें हाड मास के एक कमजोड़ बूढ़े शख्स ने सिर्फ और सिर्फ अहिंसा और सत्त्याग्रह के हथियार से भारत छोड़ने पर मजबूर किया।
आज उन्ही के स्वतंत्र भारत में उनके आपनो से गांधीगीरी हारी।
आजाद भारत में अनेको राजनेतिक और सामाजिक समस्याएं हुई पर उन समस्याओं के निराकरण केलिए राजनेतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों को लेकर सरकारों के विरोध में सत्त्याग्रह और अहिंसा के मार्ग से ही आंदोलन किया।
राम मनोहर लोहिया, जयप्रकास नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे अनेक नेताओं ने सत्त्याग्रह और अहिंसा को ही हथियार बनाया।
उसी तरह अन्ना हजारे मेधा पाटकर जैसे अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी सत्याग्रह व अहिंसा के मार्ग से ही आंदोलन करते आए हैं।
आपात काल के दौर में भी इसी गांधीगीरी के मार्ग पर कायम रहे इसी मार्ग से इंदिरा गांधी को पराजित भी होना पड़ा और सत्ता से बहार भी हुई कोंग्रेस।
पर आज उसी भारत में सत्याग्रह और अहिंसा का मार्ग ड्रामा लगने लगा।क्यों पराजित हुए गांधी के विचार क्यों विशवास ख़त्म होरहा है गांधी गिरी का क्यों सत्याग्रह और अहिंसा के मार्ग से विशवास ख़त्म होने का अंदेशा है ?
क्या सच में गांधीगिरी हारी ?
हाँ गांधीगिरी हारी।
भारत की लोकतांत्रिक सरकारोंने गांघीगिरि की कद्र नहीं की यूँ कहें तो ठीकही होगा की गांधीगिरी का मजाक उड़ाया और अपमान किया।गांधी के बताए अहिंसा और सत्त्याग्रह के मार्ग को सिरे से नकार दिया।
पिछले कई सालों में सरकारों के गैर ज़िम्मेदार रवैय्ये देखने को मिले हैं।जंतर मंतर पर जनलोकपाल आंदोलन करने की वजह से अन्ना हजारे को और काले धन की वापसी के आंदोलन की खातिर योग गुरु बाबा राम देव का जिसतरह तत्कालीन कोंग्रेस सरकार ने जिस तरह भोंडा मजाक उडाया था इसे टीवी के माध्यम से दुन्या ने देखा।
सएकारों की ऐसी असंवेदनशीलता को देखते हुए शर्म महसूस होती है।
ऐसा ही सरकारी असंवेदवंशीलता का मामला इरोम सशर्मिला के साथ भी हुआ। पूर्वोत्तर के मणिपुर प्रांत की इरोम शर्मीला ने भी भारत सरकार के विरुद्ध अफस्पा AFSPA जैसे विवादित कानून को वापस लेने केलए विश्वकी सबसे लंबी भूक हड़ताल की16 वर्षों तक यानि 5757 दिन भूके रह कर सत्त्याग्रह किया।राष्ट्रपिता गांधीजी से प्रेरणा लेकर उन्ही के देशमे गांधीजी को आदर्श मानने वाली सरकारों के सामने इस उम्मीद में की भारत सरकार द्वारा सशास्त्र सेना को दिए गए अमानवीय अधिकारों को रद्द करनेकी मांग मानली जाए गई।
सन् 2000 में तब की NDA समर्थक अटल बिहारी वाजपाई सरकार के सामने अपनी मांग को लेकर उनहोंने भूक हड़ताल शुरू की। और तब से लेकर 9 अगस्त 2016 तक लगातार भूके रह कर अपनी मांग पर डटी रही।पर इन 16 वर्षों में सत्ता में रहि किसी भी सरकार ने इरोम शर्मीला के लिए अपनिबसंवेदना नहि दिखाइ चाहे वह कवी मन रखने वाले NDA + भाजपा के अटल बिहारी वाजपाई हों उनका कवी मन नहीं जाग या UPA + कोंग्रेस के मौनी बाबा मनमोहन सींघ हों वह भी मौन धारण किये रहे आज के विकास पुरुष नरेंद्र मोदी जो सत्ता में आए सबका साथ सबका विकास के नारे से पर उन्हें भी मणिपुर की इरोम का साथ नहीं दिया। अर्थात किसी भी सरकारने चाहे वह राइट हो या लेफ्ट किसीने भी इस महिला सत्याग्रही की मांग पर तवज्जोह नहीं दी। और ना ही भारत के मेन स्ट्रीम राष्ट्रीय हिंदी अंग्रेजी मिडिया नेभी इरोम शर्मीला की 16 वर्षीय लंबी भूक हड़ताल पर गंभीरता से कवरेज नहीं किया।
यही कारण हुआ की हर दिन इस आशा में की हमारी चुनी हुई सरकार आज कोई निर्णय लेगी या मिडिया इरोम को विश्व के सामने प्रभावी ढंग से पेश करेगी। मिडिया द्वारा सरकारों की असंवेदन शीलता पर सवाल खड़े करे या विपक्ष संसद में हंगामा खड़ा करे।मणिपुर में अफस्पा रद्द करने के लिए प्रस्ताव लाये।पर कहीं भी कुछ नहीं हुआ और कुछ होने की आशा में 28वर्षीया इरोम की भूक हड़ताल दिन ब दिन आगे बढ़ती गई और दिन महीनों में महीने साल में और साल 16 सालों में बीतते चले गए।पर किसी भी सरकार की संवेदना नहीं जाएगी।
अपने इतने लंबे भूक हड़ताल को जारी रखने वाली इरोम शर्मीला को विश्व लोह महिला IRON LADY का खताब तो मिला पर यही आइरन लेडी सरकारों सहित भारतीयों की असंवेदनशीलता से निराश होकर 16 साल बाद 9 अगस्त 2016 को स्वेच्छा से अपनी भूक हड़ताल खुद ही ख़त्म कर सक्रिय जाजनीति में आने का एलान करदिया।
क्या यह गांधीगीरी की हार नहीं है?
ऐसा नहीं हिना चाहिए था यह भारत के भविष्य के लिए आप शगुन है।
आज के बाद अगर देश में किसी को अहिंसक मार्ग सत्याग्रह करने की नौबत आई तो उन्हें इरोम का संघर्ष और उपेक्षा ज़रूर याद आएगी हो सकता है अब लोग अहिंसा को छोड़ हिंसा का मार्ग चुने तब ऐसी स्तिथि भारत की एकता व वखंडता के लिए घातक होगी।यही गांधीगीरी की हार होगी।
यहां यह बताना ज़रूरी होजाता है की गांधीगीरी की हार भारत को नई चुनौतियों की तरफ ले जाएगा।
क्यों की गांधीगीरी की हार सत्त्याग्रह की हार होगी।
सत्त्याग्रहों की हार अहिंसा की हार होगी।
अहिंसाकि हार अविश्वास को जन्म देगी।
अविशास अराजकता को अराजकता हिंसा को और हिंसा लोकतंत्र के ताने बाने को तोड़ने का आधार बनेगा लोकतंत्र ख़त्म भारत की आत्मा ख़त्म। आत्मा ही नहीं होगी तो भारत निर्जीव होगा बंधुत्व ख़त्म होगा और अलगाव वाद को जन्म देगा और अलगाववाद देश के टुकड़े टुकड़े कर देगा।
अखंड भारत की माला जपने वालों को बताना चाइये की अखंड भारत के माने क्या सिर्फ ज़मीन का टुकड़ा है या यहां रेहन वालों के प्रति कुछ जिम्मेदारियां भी है।
क्या उनकी आवाज़ नक्कार खाने में तुति के मानिंद है।
इस पर भारत के विचारवंतों को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
जिस तरह इरोम ने टूटकर अपनी 16 वर्षीया भूक हड़ताल वापस ली और इसके लिए 9 अगस्त का दिन चुना यह क्या सन्देश देता है।
गांधीजी ने 9 अगस्त को अंग्रेजों से भारत को आज़ादी दिलाने के लिएQUIT INDIA MOVMENT भारत छोडो अभियान शुरू क्या था।इरोम शर्मीला ने भी 9 अगस्त कही दिन चुना।गांधीजीने तो अंग्रेजों को भारत छोड़ने को कहा था। पर इरोम के इसी ऐतिहासिक को चुनने का मतलव भारत से छुटकारा तो नहीं। अगर ऐसा हुआ तो यह सन्देश भारत की अखंडता पर सवाल खड़ा करने वाला है।
क्योंकि भारत की राजनीति में पश्चिम भारतीयों की प्रभुता है और मिडिया पर भी।इस को पूर्वी भारती अपनी उपेक्षा का कारण मानले तो पूरब पश्चिम में टकराव की स्तिथि पैदा हो सकती है।
खैर पर जो हुआ ठीक नहीं हुआ 16 वर्षों तक भारत की सरकारों की संवेदना और मानवता अपनेही देश के नागरिक के लिए नहीं जागी।
इसे देखते हुए आज अंग्रेजों का आभार प्रकट करने का मन करता है।क्योंकि उनमें अधिक संवेदना और मानवता होगी तभी तो गांधीजी को भूक से मारने नहीं दिया। और उनके अहिंसक सत्त्याग्रह के आगे भारत को आज़ाद कर हमेशा के लिए चले गए।
पर आज हमारी मानवता और संवेदना अंग्रेजों के विपरीत है तभी तो इरोम शर्मीला को 16 साल से लगातार भूक हड़ताल करने पर भी भारत सरकार से नाकामी और निराश ही मिली।
आजभी मणिपुर में अफस्पा AFSPA ज्यूँ का त्युं लागू है
मानवी मूल्यों का उल्लंघन धड़ल्ले से होरहा है।
इसी लिए लगता है।
। गांधीगीरी हारी।
लेखक
मराठा खान
marathakhan@gmail.com
पर अपनी प्रतकिर्या दें।